Friday, August 16, 2024

मैं सिर्फ अपने लिए लिखती हूँ

मैं सिर्फ अपने लिए लिखती हूँ 
क्योंकि मुझे कोई नहीं सुनता। 
मैं एक मशहूर लेखक बनना चाहती हूँ 
पर मुझे कोई नहीं पढ़ता 
क्योंकि...
मैं सिर्फ अपने लिए लिखती हूँ 
क्योंकि मुझे कोई नहीं सुनता...

गलत

एक उम्र तक हम समझते हैं कि हम हर नाइंसाफी से लड़ लेंगे। कोई ज़ुल्म नहीं सहेंगे। जो नहीं लड़ता उसे कमज़ोर समझते हैं। हमें लगता है उसे न्याय सिर्फ इसलिए नहीं मिला क्योंकि वो लड़ा ही नहीं। 
और हम लड़ने लगते हैं। 
हर नाइंसाफी के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं। 
सोचते हैं कुचल देंगे हर गलत हो। 
कह देंगे कि नहीं, मुझे ये 'गलत' अपने जीवन में चाहिए ही नहीं, और वो 'गलत' हमारी ज़िंदगी से निकल जाएगा!

फिर एक दिन अक्ल ठिकाने आ जाती है। 
'गलत' अपने आप को गलत समझता ही नहीं। 
वो ताकतवर होता है, 'गलत' को सही साबित करने वाले उसके साथ खड़े हो जाते हैं। 
वो जोर से चीखता है "जा..... नहीं जाता, क्या कर लेगा?"
आप फिर सोचते हैं कि आप उसे हरा देंगे। आप भिड़ भी जाते हैं उससे। 

...और तभी 'गलत' को सही साबित करने वाले आपके हाथ-पांव, शरीर, दिल, दिमाग सब बाँध देते हैं। और आपके मुँह पर टेप चिपकाकर ठीक 'गलत' के पास बिठा देते हैं। 
आपको घुटन होती है। आप कुछ देर तक इंतजार करते हैं कि गलत के साथियों को उसकी सच्चाई पता चलते ही वो आपको खोल देंगे।

...और वो लौटते हैं
पर एक और रस्सी लिए.. आपको हमेशा हमेशा के लिए 'गलत' के साथ बाँध देने के लिए। 

अब आप में हिलने की भी ताकत नहीं रह जाती। 
और आप इस सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं कि आपको अब ज़िंदगीभर 'गलत' के साथ रहना है!

दूर से उस उम्र का व्यक्ति धुँधला सा दिखाई देने लगता है, जिस उम्र में उसे लगता है कि वो हर नाइंसाफी से लड़ लेगा। कोई ज़ुल्म नहीं सहेगा। जो नहीं लड़ता उसे कमज़ोर समझता है। उसे लगता है कि आपको न्याय सिर्फ इसलिए नहीं मिला क्योंकि आप लड़े ही नहीं। 
और वो 'गलत' से लड़ने लगता है!

Thursday, August 15, 2024

Trending Gussa

Mujhe kisi ka dukh ab mehsus nahi hota
Gussa nahi aata, protest ka mann nahi karta.
40 ki hote hote aisa kai baar hote dekha.
Humara gussa limited time edition hai.
Latest fashion ki tarah.
Aaj kuch trending hai to us par gussa... uske liye nyay ki guhaar.
Trend change.. gussa change!

Ab mujhe sirf ek baat ki fikra hai.. apni.
Main uub chuki hu is job se.
Is achcha karne ke dikhave ke mukhaute se.
Aaspaas sabke paas hai ye mukhauta.
Is mukhaute ko dekhkar koi genuine bachcha hamare dal me shamil ho jata hai.
Jaise kabhi hum huye the.
40 ka hotey hotey uska asli chehra bhi jal chuka hota hai trending ki aag me aur uske paas bhi mukhauta pehanne ke alawa koi chaara nahi hota!
Par yaha se nikalkar karungi kya?
Isliye padi rehti hu...