Sunday, June 23, 2024

बहुत कुछ!

मैं छुट्टी पर चली गयी। 
मुझे लगा मैंने इंतजाम तो कर ही दिया है। 
अपनी दोस्त को कह तो दिया है कि तुम्हारा ख्याल रखे। 
अब कैसे और कितना ख्याल रखे ये भी specify करती तो थोड़ा ज़्यादा हो जाता न?
एक तो बेचारी ख्याल रखने को राजी हो गई थी। यही बड़ा एहसान था। 
उसने ख्याल तो रखा ही पर अपने हिसाब से। 
जब तुम्हें पानी की जरूरत थी तब नहीं दिया।  जब नहीं थी तो खूब दिया। 
मैं वापस आयी तो तुम सूख चुके थे। मैंने पानी दिया, खाद डाला, सब किया। 
मुझे लगा मैंने तुम्हारे लिए बहुत कुछ किया!
पर तुम...
किसी के लिए कुछ करने का एक वक़्त होता है। बाद में बहुत कुछ करके हम कुछ बदल नहीं सकते!

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